एक दिल हज़ार अफ़साने



स्टेशन आ गया था , वो मेरी बाइक से उतरी और बिना पीछे देखे स्टेशन के अंदर चली गई । मैं देखता रह गया उसे आखरी बार ! स्टेशन से वापस आते समय कुछ महीने पहले का घटना क्रम आंखों के सामने से गुजर गया ....
 
" अगर मैं खत लिखूं तो क्या आप जवाब देंगे ?”

मेरे आफिस के दोस्त की रिसेप्शन की पार्टी की गहमा गेहमी मे ,  एक आवाज़ मुझे पीछे से सुनाई दी,  वो  मेरी तरफ देख रही थी । दोस्त की दूर की बहन थी बस इतना ही मालूम था । " जी ,ज़रूर " , मेरे कहते ही , वो बोली, ‘ऑफिस एड्रैस तो भैया वाला ही है ?’ ।  मैंने हाँ मे सर हिलाया , और वो वहाँ से चली गई ।

4 दिन बाद ख़त आ गया ....बेहद खूबसूरत राइटिंग में ,शुरू में प्रिय,….. जी,अंत मे लिखा था... , ‘अगर उचित समझें तो जवाब दीजिएगा, इंतज़ार तो रहेगा ही ....आपकी.... !!
                                                                                                                                                                                                                                 
मैं बेहद खुश था । मैने भी प्रिय ....जी ही लिख कर उसके खत का उसी शालीनता से जवाब लिखा, अंत मे लिखा, आपका ..  । जवाब का इंतज़ार शुरू हो गया ।

इस बार खत आत्मीय और थोड़ा लंबा भी था । पहले ही वाक्य में शिकायत थी कि मैंने.... जी क्यूँ लिखा, नाम क्यूँ नही ? उसके बाद कुशलक्षेम और ढेर सारी हिदायतें भी .... अकेले रहते है, खाने पीने का आइंदा से खयाल रखेंगे । ज़्यादा स्मोक और  ड्रिंक्स नही, आदि। इस बार खत के अंत मे लिखा था... आपकी ही .....!!

पहली बार लगा कि कोई है, जिसे मेरी फिक्र है .....। सफर आगे बढ़ता चला गया। चार महीनों में ढेर लग चुका था ख़तों का । अब उनमे हक़ और शिकायतें भी थीं ।

मेरे माँ बाबूजी दूसरे शहर में थे, बड़े भाई के साथ ।फिर एक दिन मैंने  भाई को इशारे में बता दिया था कि यहां कुछ मेरा चल रहा है, उधर ज़रा टटोल के बताओ...क्या मूड है ।

उसका उत्तर अत्यन्त निराशाजनक आया । सीधा मतलब था निकट भविष्य में कुछ नही होगा । कम से कम एक साल तक तो बात ही मत निकालो ।

उसके दो दिन बाद ही इसके एक खत ने खतरे की घंटी बजा दी ।
"   शादी कब करनी है, अब देर मत करो । डैडी यहां मेरे रिश्ते की बातें कर रहे हैं , अगले खत में पक्का बताओ मुझे।"

 मेरी हालत खराब हो गई । घर से भाई का ये खत और इधर ये अल्टीमेटम । मैं क्या करूँ । बस तय किया कि बाबूजी को सब सच बतादूँ । उसकी फ़ोटो ,और दो पेज के खत में सच सच लिख दिया । दूसरा खत उसको लिखा की क्या हुआ और चल रहा है ।                         

मेरे  खत के जवाब में , 5 दिनों बाद बाबूजी खुद ही दोपहर मे आ खड़े हुए थे कमरे पर । इतवार था,  खूब खरी खोटी सुना दी।  " नोकरी करने आए हो या तमाशे करने । माँ की हालत खराब हो गई है । तुम्हारी शादी बिरादरी में ही होगी वो भी जब मै चाहूँगा, वरना, वापस घर मत आना।"  बाबूजी उसी दिन वापस चले गए । मै सन्न रह गया ।

उसकी दो चिट्ठियां मिली , क्या हुआ , क्या कहा बोलो । मैंने लिखा, मुझे वक़्त दो । कुल छह महीने हुए हैं नौकरी को मेरे , बचत भी नहीं है की घर अलग से लगा सकूँ ,तुम प्लीज वेट करो किसी तरह एक साल और” । 

बस, चार पांच दिन बाद वो खुद ही मेरे आफिस में आ खड़ी है । लेमन कलर के ड्रेस मे , एक पर्स और एक छोटा सा बेग ।  मैं भौचक रह गया था । " मैं रिसेप्शन में बैठी हूँ, तुम काम खत्म कर लो , बातें करनी हैं। भैया को सब पता है शुरू से " ।
यानि दोस्त को सब मालूम था, दिखाया नहीं कुछ उसने जबकि रोज़ ही बैठक होती थी ।

ये मेरी उससे दूसरी बार मुलाकात होने वाली थी , आमने सामने ।  पहली बार मिली थी तब तो बस एक सवाल पूछा था उसने , आज शायद लाखों सवाल होंगे मन मे।

मैंने बॉस से छुट्टी मांगी....,गेस्ट आएं है। उन्होंने भी इसे देख लिया था , मुस्कुरा कर बोले ‘ओके जाओ’  । मैने," चलो चलते हैं” कहा और बाइक निकाल ली ।

वो  बोली " पहले शहर दिखाओ फिर कहीं बैठते है , खाना खाएंगे , कितने दुबले लग रहे हो तुम ? " . बाइक पर उसका एक हाथ मेरे कंधे पर था, दूसरे से बैग पकड़ रखा था ।
                                                                  .
पूरे रास्ते वो पूछती रही कि किराने की कोनसी दुकान सबसे अच्छी है, पिक्चर हॉल, पार्क, हॉस्पिटल, फल , सब्ज़ी मंडी, रेडीमेड शॉप आदि ।बेहद खुश लग रही थी । बोली " अपना शहर कितना स्वीट है ना ? “ ......... अपना शहर !!!?

और फिर रेस्त्रां  मे हम आमने सामने थे, खूब बातें निकल पड़ी , पहली मुलाक़ात से लेकर अब तक बढ़िया चाइनीज़ खाना खाया ……. और आखिर मे बात चली शादी के बारे में ।

उसने फिर बताया की  उसके पास समय बिल्कुल नही था । सत्ताईस पार कर चुकी थी और घर वालों पर भारी दबाव था ।  बहुत रिश्ते आ रहे थे । उसके पिताजी का बस चले तो कल ही कर दें शादी ।

और मुझे ?  वक़्त चाहिए था , एक साल का ।

बात फंस चुकी थी । दोनों अपनी जगह एकदम ठीक थे ।

थोड़ी उत्तेजित  होने लगी थी । आवाज़ में दुख तेज़ी और तल्खी भी बढ़ने लगी थी । मैं एकदम सकपका गया । उसको बोला " थोड़ा धीरे बात करो प्लीज। ये छोटी जगह है, भीड़ लग जाएगी । "

वो संभली और बोली " ओके , नो प्रोब्लेम , नेक्स्ट संडे को फिर आऊंगी , उस दिन सोच के  फाइनल बता देना , और हां…. अगर जवाब नही में हो तो , मेरे सारे ख़त मुझे वापस चाहिए । ".

आज वही संडे था । हम उसी जगह मिले थे , सिर्फ पांच मिनट के लिए । खत मैं  वापस दे चुका था जो उसने गुस्से में बेग में डाल लिए थे ।

बोली "  ट्रेन पकड़ूंगी , तुम स्टेशन छोड़  दो मुझे " ।

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निरंजन धुलेकर।
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4 Comments
  • Krishan Arora
    Krishan Arora November 6, 2017 at 10:59 PM

    Achhi, magar thodi aur lambi chalti toh achha lagta. Story ka main character kyu peeche hat gya. Itna kamjor toh nhi hona chahiye tha.

    • Niranjan Dhulekar
      Niranjan Dhulekar November 6, 2017 at 11:04 PM

      हम कहानियों को तो मोड़ सकते हैं, हक़ीक़त को नही । निर्णय जल्दी हो गया, ये भी तो एक अच्छा हुआ। अब हर कहानि का नायक फिल्मी नही होता अरोड़ा जी, कुछ कहानियाँ ऐसी भी बन जाती हैं । कहानी जैसी थी ,प्रस्तुत की । असल जिंदगी सब अपने मन का होता कहाँ ।

  • Krishan Arora
    Krishan Arora November 6, 2017 at 11:11 PM

    Aise har character se mera ek hi sawal hai, jab sab mata pita ki marji se karna hota hai toh baat badate hi kyu hai, ladki toh apna sab kuch chodkar aane ko taiyar rhti hai par ladko ki himmat jawab de jaati hai, kehne ko h mard...

    • Niranjan Dhulekar
      Niranjan Dhulekar November 6, 2017 at 11:22 PM

      शायद इसलिए कि जहां लड़के प्रेम होने के बाद आसमान में उड़ने लगते है, लड़कियां आने वाली ज़िन्दगी के नए धरातल ढूंढ रही होती हैं । मसला स्वप्न और हकीकत का होता है ।जो उड़ेगा ,वही तो गिरेगा ।

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