प्यार का आनंद
एक तितली मायूस सी बैठी हुई थी। पास ही से एक और तितली उड़ती हुई आई। उसे उदास देखकर रुक गई और बोली : क्या हुआ ? इतनी उदास क्यों लग रही हो ?
वह बोली : मैं एक फूल के पास रोज़ जाती थी। हमारी आपस में बहुत दोस्ती थी। बड़ा प्रेम था। पर अब उसके पास समय ही नहीं है मेरे लिए। वह तो बहुत व्यस्त हो गया है।
दूसरी तितली बोली : वह व्यस्त हो गया है तो तेरे पास तो समय है न तू तो जा सकती है। तू गई ?
मैं क्यों जाऊँ ? जब उसे मेरी ज़रूरत नहीं में अब क्यों जाऊँ ? - वह बोली
दूसरी तितली बोली : पगली ! तू कैसे कह सकती है कि उसे तेरी ज़रूरत नहीं। तू अनुमान क्यों लगाती है ? तुझे क्या पता वह भी तेरा ही उस भीड़ में इंतज़ार करता हो।
तब उस तितली के आँसू निकल आए। उसने अपनी सखी को गले लगाया और गई अपने मित्र से मिलने।
फूल बोला - कहाँ रही इतने दिन ! मेरा बिल्कुल मन नहीं लगा तुम्हारे बिन ! कहाँ थी ?
तितली मुस्कुराई और बोली कहीं नहीं बस रास्ता गुम हो गया था।
इसलिए अगर कभी भी साथ पाने का मन करे तो साथ दे दो। किसी से बात करने का मन करे तो आप स्वयं उससे बात कर लो। दूसरे का इंतज़ार न करो। आपको कुछ पता नहीं हे की दूसरा भी आपका ही इंतज़ार कर रहा हो।
कोई हमसे बात करे, या हमसे पहले वही बात करे, यह सोचने की बजाय उनसे पहले ही बात करना प्रारम्भ कर दो। किसी के इंतज़ार में नहीं, बल्कि उनके साथ समय व्यतीत करो।
प्यार देने में अलग आनन्द है और प्यार लेने में अलग..
इसलिए कहते हे प्यार करते चलो प्यार बाँटते चलो ।
इसलिए कहते हे प्यार करते चलो प्यार बाँटते चलो ।