रसगुल्ले का जज
लोकमान्य कन्या इंटर कॉलेज सन साठ के दशक में मराठी स्कूल के नाम से जाना जाता था । इसी स्कूल में मैं तीसरी में था । कोएजुकेशन कक्षा 5 तक था उस समय ।ज़्यादातर टीचर्स मराठी ही थीं जो माँ की अच्छी सहेलियाँ भी । मैं उनके घर माँ के साथ आता जाता भी था ।
स्कूल में बड़ी लड़कियों, मतलब जो कक्षा सात से इंटर तक पढ़ती थीं, का एक कोर्स कुकिंग भी होता था ।
एक दिन बताया गया कि कल छुट्टी है , स्कूल में मेला लगेगा । खाने के स्टॉल भी लगेंगे । सब को आना है । उस समय मुझे रसगुल्ले बेहद पसंद थे ।
मेरी क्लास टीचर कुलकर्णी बहनजी ने, जिनके यहां माँ मुझे गणित पढ़ने को भी भेजती थीं, ने मुझे बताया कि कल बड़ी लड़कियाँ रसगुल्ले बनाएंगी , स्कूल ज़रूर आना ,खाने हो तो ।
मेरी तो मन मांगी मुराद पूरी हो गई । पहुँच गया सवेरे 9 बजे । मुझे देखते ही वहाँ के स्टॉल्स पर खड़ी लड़कियों ने बुलाना शुरू किया । कोई रसगुल्ले दिखा रही थी ,तो कोई जलेबी, किसी के स्टॉल पर मलाई के लड्डू थे तो कोई पेड़ा दोने में लिए खड़ी थी ।
मेरी ऐसी आवभगत कभी हुई नही थी ,फिर क्या था , हर स्टॉल पर जा कर ख़ूब माल उड़ाया ।
मुह धोया ,कमीज के बांह से मुह पोछा ,और चल दी हमारी सवारी घर की तरफ !!
तभी, पीछे से 4-5 , लड़कियाँ दौड़ती हुई आयीं और मुझे वहां के बरगद के पेड़ के नीचे पकड़ लिया । बोलीं, दो रूपए पच्चीस पैसे निकालो ।
मैंने जगदीप स्टाइल में पूछा ,' पियसे कैसे पियसे ? तुमने तो बुला बुला कर खिलाया था मुझे ,,मेरे पास कुछ नही है देखो तुम भी । मैंने निक्कर की जेबे पलट के दिखा दी ।"
सब ने कहा ,हमे नही मालूम, निकालो नही तो बड़ी बहनजी, यानी प्रिंसिपल, यानी दयाल बहनजी के पास ले जायेंगे, वो तुम्हे स्कूल से निकाल देंगी ।
मैंने कहा, मुझे कुलकर्णी बहन जी के पास ले चलो , वही देंगी पैसे तुम्हे।
और भी लड़कियाँ जमा हो गईं थी , अब पूरी बारात कुलकर्णी बहनजी के पास गई और उनसे मेरी फरियाद की गई ।
वो किस्सा सुनकर खूब ज़ोर ज़ोर से हँसने लगीं ,और मुझे अपने पास बिठा लिया ।
वो लड़कियों से बोली" अभी तुम्हारी कुकिंग का रिजल्ट बताना है मुझे । लो, ये आ गए जज साहब !!, इसने सबकी मिठाई खाई है ,अब यही बताएगा किसकी मिठाई सबसे अच्छी थी !! अब बोलो ? शर्म नही आती छोटे से बच्चे से पैसे मांगते हुए ? तुमने इसे बताया था क्या कि पैसे हो तभी खाना ? भुगतो अब ।
हालांकि मुझे कुछ भी समझ नही आया कि क्या हो रहा था पर वो घटना और उन बड़ी लड़कियों के उड़े चेहरे आज भी याद आ के रसगुल्ले वाला वो मेला फिर से लग जाए सोच के मन पीछे की तरफ दौड़ पड़ता है ।
आज भी रोज़ उस बरगद के नीचे से निकलता हूँ, तो ज़ेब में हात जा कर पैसे टटोलने लगता है , कही फिर से न फंस जाऊँ ।
सन 1963 में सवा दो रुपए एक भारी रकम थी । अरे इतने रुपए की मिठाई खा गया था मैं !!!??
निरंजन ।
Aaj paise hain to mithai khaa nahi sakte.
कोई मुफ्त में खिलाए तो भी खाने का मन नही करता ।
Man to karta hoga, but health