अविश्वास
"दीदी आप हनीमून मनाने कहां जा रही हो?"
"मनाली। सुन न बिट्टू मेरी दो तीन स्वेटर निकाल कर रखना मैं घर आऊंगी तो ले जाऊंगी।"
"कब आ रही हो दीदी?"
"जल्दी ही। चल बाय।"
मीनू ने फोन रखा ही था कि सासु मां को सामने खड़े पाया।
"मीनू बेटा तुम घूमने जाओगी न तो अपने सारे जेवर मत ले जाना। कुछ हल्के फुल्के जेवर रख लेना। बाकी जेवर या तो अपनी अलमारी में ताला लगा कर रखना या मुझे दे देना मेरी अलमारी में रख दूंगी। अपने पापा के यहाँ मत छोड़ जाना। वो क्या है न तुम्हारी छोटी बहन भी है न।"
मीनू सुन कर हतप्रभ रह गई। जिन माता-पिता ने अपनी बेटी दे दी उन पर इतना बड़ा अविश्वास। नई नई शादी हुई थी क्या कहती चुप रह गई पर आंखें डबडबा गईं।
मीनू मायके से वापस आई उस दिन सारे जेवर पहने थी। सासु मां ने देखा तो तसल्ली की सांस ली। हनीमून पर जाने का दिन भी आ गया लेकिन जेवरों के बारे में मीनू ने अभी तक कुछ नहीं बताया था। सासु मां की बैचेनी बढ़ती जा रही थी। आखिर उनसे रहा न गया तो पूछ ही लिया।
"मीनू जेवर तुम अपनी ही अलमारी में रख कर जाओगी क्या?"
"मम्मी जी आपने कहा तो मुझे भी लगा कि घर में जेवर सुरक्षित नहीं रहेंगे वहां मेरी छोटी बहन है तो यहां मेरी छोटी ननद भी तो है इसलिए मैंने लाकर ले लिया और गहने उस में रख दिए ।
हर कहानी को पढ़ने और समझने का अपना एक नज़रिया होता है। पौधे की भी जगह बदलते है तो उसे कुछ दिन विशेष देखभाल की जरूरत होती है सही माहौल मिलने पर ही वो उस मिट्टी में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश करता है। इसी प्रकार बहु के रूप में दूसरे के आंगन से लाये गए पौधे को विशेष प्यार और अपनेपन रूपी खाद,पानी से वहां की मिट्टी में जड़ें जमाने दें। सही माहौल मिलने पर वही पौधा एक दिन विशाल पेड़ बन कर पूरे परिवार को अपनी शीतल छाया और फल फूल देगा। परन्तु एक बात स्पष्ट है जैसे लापरवाही में माचिस की एक छोटी सी तीली से भयंकर आग सब कुछ जला सकती है वैसे ही लालचवश या भूलवश की छोटी सी गलती पूरे घर की खुशियों को खत्म कर सकती है।